बिहार की सियासत एक बार फिर गरमाई हुई है। जैसे-जैसे 2025 के विधानसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं, राज्य की राजनीति में नए गठजोड़, आरोप-प्रत्यारोप और रणनीतिक बदलाव देखने को मिल रहे हैं।
राज्य के प्रमुख राजनीतिक दल—राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जनता दल (यूनाइटेड) [JDU], भारतीय जनता पार्टी (BJP), और कांग्रेस—सभी अपने-अपने पत्ते खोलने लगे हैं। गठबंधन की राजनीति में संभावनाएं और अटकलें तेज़ हो गई हैं, खासकर इस बात को लेकर कि कौन किसके साथ जाएगा और किसे मिलेगा जनता का भरोसा।
हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुछ ऐसे बयान दिए हैं, जिन्हें लेकर सियासी हलकों में काफी चर्चा है। वहीं, तेजस्वी यादव लगातार जनता से सीधे संवाद स्थापित कर रहे हैं और खुद को अगला मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं।
राज्य की राजनीति में जातीय समीकरण, विकास के मुद्दे, बेरोजगारी और शिक्षा की स्थिति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। खासकर युवा वर्ग में राजनीतिक जागरूकता बढ़ी है और यह वर्ग अब सीधे सवाल कर रहा है कि उन्हें कब मिलेगा रोजगार और बेहतर भविष्य?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले महीने बिहार की राजनीति के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका और ज़मीनी कार्यकर्ताओं की मेहनत भी चुनावी राजनीति को नया रंग दे रही है।
नीतीश कुमार और एनडीए की रणनीति
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में अपने दल जदयू की राज्य कार्यकारिणी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की सराहना की। उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग दोहराई और कहा कि यदि केंद्र सरकार को इसमें कोई समस्या है, तो वह वित्तीय सहायता के माध्यम से राज्य की मदद जारी रखे।
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी स्पष्ट किया कि 2025 का विधानसभा चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा। उन्होंने कहा, "मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमारे एनडीए गठबंधन के सर्वमान्य नेता हैं।"
विपक्ष की प्रतिक्रिया और बयानबाज़ी
राजद नेता तेजस्वी यादव ने हाल ही में पेश हुए बजट को एनडीए सरकार का अंतिम बजट बताया। इस पर बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने पलटवार करते हुए कहा कि तेजस्वी यादव को विपक्ष के नेता का पद छोड़कर राजनीतिक भविष्यवक्ता का पद ग्रहण करना चाहिए।
वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी के दरभंगा के अंबेडकर हॉस्टल में दलित छात्रों से मिलने के प्रयास पर एनडीए नेताओं ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि हॉस्टल राजनीतिक बैठकों के लिए उपयुक्त स्थान नहीं हैं।
अन्य राजनीतिक घटनाक्रम
पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के '56 इंच का सीना' वाले बयान को लेकर पोस्टर लगाए गए, जिस पर विपक्ष ने तंज कसते हुए इसे चुनावी जुमला बताया।
इसके अलावा, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के सांसद राजेश वर्मा ने दावा किया कि बिहार में इंडिया गठबंधन विधानसभा चुनाव से पहले टूट जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके घटक दल एनडीए में शामिल होंगे और जो बचेंगे उनके बीच घमासान मचेगा।
बिहार की राजनीति एक नए मोड़ पर खड़ी है, जहां हर दल अपनी रणनीति को धार देने में जुटा है। सत्ता का भविष्य किसके हाथ में होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन इतना तय है कि आगामी चुनाव में बिहार की जनता का राजनीतिक दृष्टिकोण पहले से कहीं अधिक मजबूत और निर्णायक होगा।
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