अमर शहीद मदन लाल ढींगरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक II Martyr Madan Lal Dhingra - The Biography Search

Dont Miss 👉

Freedom of Journalism

Advertise here 👇👇

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Monday, August 18, 2025

अमर शहीद मदन लाल ढींगरा : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक II Martyr Madan Lal Dhingra

Saheed Madan Lal Dhingra (Image restored by TBS)

 

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इन बलिदानियों में एक नाम है शहीद मदन लाल ढींगरा का, जिन्होंने विदेशी धरती पर रहकर भी भारत माता की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की बाज़ी लगा दी। लंदन की धरती पर अंग्रेज़ अधिकारियों को चुनौती देकर फाँसी के फंदे को गले लगाने वाले ढींगरा भारतीय युवाओं के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहेंगे।


प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि

मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनका परिवार समृद्ध और प्रभावशाली था। पिता डॉ. दीवान अतर दास ढींगरा अमृतसर में प्रसिद्ध डॉक्टर थे और ब्रिटिश सरकार से सम्मानित भी थे। परिवार का वातावरण अंग्रेज़परस्त और आधुनिक था, लेकिन मदन लाल के भीतर देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित थी।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में ही हुई। बाद में वे लाहौर गए जहाँ उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही वे राष्ट्रीयता की विचारधारा से प्रभावित हुए। लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं के विचारों ने उनके मन को गहराई से प्रभावित किया।


छात्र जीवन और स्वदेशी आंदोलन से जुड़ाव

1905 में जब बंगाल विभाजन हुआ और पूरे देश में स्वदेशी आंदोलन की लहर उठी, तब मदन लाल ढींगरा भी इससे अछूते नहीं रहे। उन्होंने विदेशी कपड़ों और वस्तुओं का बहिष्कार किया और अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू कर दी।

लेकिन उनकी इस देशभक्ति से उनके पिता और परिवार खुश नहीं थे। एक घटना बहुत प्रसिद्ध है—ढींगरा ने अपने कपड़ों में से विदेशी कपड़े निकालकर सार्वजनिक रूप से जला दिए। पिता ने नाराज़ होकर उन्हें घर से निकाल दिया। परिवार ने उनसे संबंध तोड़ लिया, परंतु ढींगरा ने देशप्रेम की राह नहीं छोड़ी।


इंग्लैंड प्रस्थान और क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत

1906 में उच्च शिक्षा के लिए मदन लाल ढींगरा को इंग्लैंड भेजा गया। वहाँ उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रवेश लिया।

लंदन पहुँचकर वे भारतीय क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े। उस समय लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित "इंडिया हाउस" क्रांतिकारियों का केंद्र था। यहाँ वीर सावरकर, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा और अन्य क्रांतिकारी स्वतंत्रता की रणनीति बनाते थे।

मदन लाल ढींगरा भी जल्द ही इस क्रांतिकारी मंडली का हिस्सा बन गए। उन्होंने हथियार चलाने, बम बनाने और गुप्त योजनाओं पर काम करना शुरू किया। सावरकर के व्यक्तित्व का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।


ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिज्ञा

ढींगरा का कहना था –
"गुलामी से बेहतर मृत्यु है। जब तक अंग्रेज़ों का शासन भारत में रहेगा, तब तक देशवासी चैन से नहीं जी पाएंगे।"

उन्होंने प्रण किया कि भारत की स्वतंत्रता के लिए चाहे उन्हें किसी भी हद तक जाना पड़े, वे पीछे नहीं हटेंगे।


विलियम हट कर्ज़न वायली की हत्या

लंदन में ब्रिटिश सरकार के कई उच्च अधिकारी भारतीय विद्यार्थियों पर नज़र रखते थे और उन्हें अंग्रेज़परस्त बनाने की कोशिश करते थे। इनमें सबसे प्रमुख थे विलियम हट कर्ज़न वायली (William Hutt Curzon Wyllie), जो "इंडियन ऑफिस" में राजनीतिक सलाहकार थे। वे भारतीय छात्रों को ब्रिटिश साम्राज्य का वफादार बनाने और स्वतंत्रता की सोच से दूर रखने का काम करते थे।

ढींगरा ने वायली को भारतीय स्वतंत्रता के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा माना। उन्होंने निर्णय लिया कि वायली को खत्म करना ही सही उत्तर होगा।

1 जुलाई 1909 को लंदन में "इंडियन नेशनल एसोसिएशन" द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम था, जहाँ अनेक लोग उपस्थित थे। उसी कार्यक्रम में वायली भी आया। जैसे ही वायली मंच से नीचे उतरे, मदन लाल ढींगरा ने उन पर गोली चला दी। वायली मौके पर ही ढेर हो गया।

यह घटना लंदन और पूरे ब्रिटिश साम्राज्य के लिए सनसनीखेज थी। पहली बार किसी भारतीय ने ब्रिटिश धरती पर ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की थी।


गिरफ्तारी और मुकदमा

वायली की हत्या के बाद ढींगरा ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की, लेकिन वे पकड़े गए। उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।

मुकदमे के दौरान अदालत में ढींगरा ने निर्भीकता से बयान दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि –
"मैंने यह हत्या किसी निजी द्वेषवश नहीं की, बल्कि अपने देश की गुलामी और अपने लोगों की पीड़ा को देखकर की है। यदि कोई अंग्रेज़ मेरे देश की स्वतंत्रता में बाधा बनेगा, तो उसका यही अंजाम होगा।"

उनकी निडरता ने सभी को स्तब्ध कर दिया।


फाँसी की सज़ा

24 जुलाई 1909 को अदालत ने उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई।
17 अगस्त 1909 को लंदन की पेंटनविल जेल में उन्हें फाँसी दे दी गई। उस समय उनकी आयु केवल 26 वर्ष थी।

उनके शव को परिवार को नहीं सौंपा गया, बल्कि जेल प्रशासन ने गुप्त रूप से दफना दिया। बाद में 1976 में उनका पार्थिव शरीर भारत लाया गया और अमृतसर में पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ।


उनकी शहादत का प्रभाव

मदन लाल ढींगरा की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। लंदन में हुई इस घटना ने अंग्रेज़ी साम्राज्य की नींव हिला दी। भारतीय युवाओं में यह संदेश गया कि अंग्रेज़ों को उनके घर में घुसकर भी चुनौती दी जा सकती है।

वीर सावरकर ने कहा था –
"ढींगरा ने भारत माता की बलिवेदी पर अपना शीश अर्पित किया है। उनका बलिदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा।"

लोकमान्य तिलक ने उन्हें भारत का अमर सपूत बताया।


मदन लाल ढींगरा का ऐतिहासिक महत्व

  1. वे पहले भारतीय थे जिन्होंने ब्रिटिश धरती पर ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर अंग्रेज़ों को खुली चुनौती दी।

  2. उनका बलिदान भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का नया अध्याय बना।

  3. ढींगरा ने यह साबित कर दिया कि भारतीय युवा केवल भाषणों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर हथियार भी उठा सकते हैं।

  4. उनकी शहादत ने अंग्रेज़ सरकार की नींद उड़ा दी और भारतीय छात्रों में स्वतंत्रता के लिए जुनून भर दिया।


प्रमुख उद्धरण

ढींगरा के अंतिम शब्द अमर हो गए –

"मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ। मेरे खून की हर बूँद भारत माता की मिट्टी को सींचेगी और देश की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करेगी।"


शहीद मदन लाल ढींगरा का जीवन अल्पकालिक था, लेकिन उनके साहसिक कार्यों और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि स्वतंत्रता भीख में नहीं मिलती, उसे साहस और बलिदान से अर्जित करना पड़ता है।

भारत आज़ाद हुआ तो उसमें ढींगरा जैसे शहीदों का रक्त भी शामिल था। उनका नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा।


No comments:

Post a Comment

Do Leave your comment

Post Top Ad

Responsive Ads Here