जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल 2025 को हुए आतंकवादी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस हमले में 26-28 निर्दोष पर्यटक अपनी जान गंवा बैठे। लेकिन इस भयावह मंजर में एक चश्मदीद बचे—मिहिर सोनी, जिनका बयान अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और 'कश्मीरियत' की अवधारणा पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
क्या कहा मिहिर सोनी ने?
इंडिया टुडे को दिए एक विशेष साक्षात्कार में मिहिर सोनी ने बताया:
“जब हमला हुआ तो ऐसा लगा मानो घोड़े वाले पहले से ही भागने को तैयार थे। पहली गोली चलते ही सारे घोड़े वाले बिना कुछ कहे भाग गए। किसी ने मदद नहीं की, न कोई रुका। ऐसा लगा जैसे उन्हें सब पता था कि क्या होने वाला है।”
क्या हमले की थी कोई पूर्व-जानकारी?
मिहिर का यह बयान न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देने वाला है, बल्कि यह इशारा भी करता है कि कहीं ना कहीं हमले की पूर्व-जानकारी कुछ स्थानीय लोगों को हो सकती थी।
जिस प्रकार से घोड़े वाले (स्थानीय लोग) बिना किसी हड़बड़ाहट के एकसाथ भागे, उससे 'मिलीभगत' की आशंका को बल मिलता है।
कश्मीरियत पर सवाल
मिहिर ने दुख जताते हुए कहा कि "जिस 'कश्मीरियत' की बात देशभर में की जाती है, वो वहां जमीन पर कहीं नहीं दिखी। वहां न इंसानियत थी, न भाईचारा, न मदद।"
उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है—क्या अब 'कश्मीरियत' एक खोखला शब्द बनकर रह गया है?
घटना की पुष्टि और रिपोर्ट का स्रोत:
यह पूरा बयान और घटना का विवरण India Today के यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित एक वीडियो साक्षात्कार में दिया गया है, जिसे आप यहां क्लिक करके देख सकते हैं।
पहलगाम आतंकी हमला केवल एक आतंकी वारदात नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है कि कश्मीर में सुरक्षा, स्थानीय सहयोग और 'कश्मीरियत' की वास्तविकता पर अब नए सिरे से चर्चा और जांच की जरूरत है।
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