धुस्का: झारखंड की थाली का लज़ीज़ मोती, जिसकी खुशबू मोह ले हर किसी का दिल - The Biography Search

Dont Miss 👉

Freedom of Journalism

Advertise here 👇👇

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Responsive Ads Here

Sunday, August 10, 2025

धुस्का: झारखंड की थाली का लज़ीज़ मोती, जिसकी खुशबू मोह ले हर किसी का दिल

 


रांची,
जब रसोई से चूल्हे की मीठी-सी सोंधी खुशबू आती है और घर का हर सदस्य प्लेट लेकर तैयार खड़ा होता है, तो समझ लीजिए कि झारखंडी रसोई में आज कुछ खास पक रहा है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं झारखंड के मशहूर पारंपरिक व्यंजन धुस्का की, जो न केवल खाने वालों के स्वाद को लुभाता है बल्कि इसमें झारखंड की मिट्टी की खुशबू भी समाई होती है।

धुस्का केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि झारखंड की सांस्कृतिक पहचान है। गाँव की चौपाल से लेकर शहर के फूड स्टॉल तक, हर जगह धुस्का का स्वाद लोगों के दिल में बसता है। यह अक्सर आलू की सब्ज़ी या चने की घुघनी के साथ परोसा जाता है और नाश्ते से लेकर त्योहार तक, हर मौके पर अपना अलग ही रंग जमाता है।


इतिहास और परंपरा से जुड़ा स्वाद

धुस्का का इतिहास सदियों पुराना है। माना जाता है कि यह व्यंजन शुरू में सिर्फ त्योहारों और खास मौकों पर बनता था, खासकर छठ, तीज और शादी-ब्याह के समय। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि यह झारखंड के रोज़मर्रा के खाने का अहम हिस्सा बन गया।
गाँवों में आज भी इसे लकड़ी के चूल्हे पर ताज़ा-ताज़ा तलकर परोसा जाता है, और कहते हैं कि धुएँ की वो सोंधी खुशबू इसके स्वाद को और भी बढ़ा देती है।




धुस्का बनाने के लिए ज़रूरी सामग्री

धुस्का बनाने की सामग्री बेहद साधारण है, लेकिन स्वाद में यह किसी भी शाही पकवान को टक्कर दे सकता है। मुख्य सामग्री में शामिल हैं:

  • चावल – 2 कप

  • चने की दाल – 1 कप

  • हरी मिर्च – 2-3 बारीक कटी

  • अदरक – 1 इंच का टुकड़ा, कद्दूकस किया हुआ

  • हींग – 1 चुटकी

  • जीरा – 1 चम्मच

  • नमक – स्वादानुसार

  • तेल – तलने के लिए


धुस्का बनाने की पारंपरिक विधि

1. भिगोना और पीसना:
सबसे पहले चावल और चने की दाल को लगभग 4-5 घंटे के लिए पानी में भिगो दिया जाता है। पुराने जमाने में इसे पत्थर की सिल-बट्टे पर पीसा जाता था, जिससे इसका स्वाद और भी निखरता था, लेकिन आजकल लोग मिक्सी का इस्तेमाल करते हैं। पेस्ट न बहुत पतला होना चाहिए और न ही बहुत गाढ़ा—बस इतना कि चम्मच से आराम से डाला जा सके।

2. मसाले मिलाना:
पिसे हुए घोल में हरी मिर्च, अदरक, हींग, जीरा और नमक डालकर अच्छी तरह मिलाया जाता है। कुछ लोग स्वाद बढ़ाने के लिए बारीक कटा प्याज़ भी डालते हैं, लेकिन पारंपरिक धुस्का प्याज़ रहित होता है, खासकर त्योहारों के समय।

3. तेल गरम करना:
कढ़ाही में सरसों का तेल गरम किया जाता है। तेल को अच्छी तरह गरम करना ज़रूरी है, वरना धुस्का तेल सोख लेगा और कुरकुरा नहीं बनेगा।

4. तलना:
चम्मच की मदद से घोल को गरम तेल में डाला जाता है। धुस्का हल्के-हल्के फूलता है और सुनहरा भूरा होने लगता है। दोनों तरफ से अच्छे से तलकर इसे निकाल लिया जाता है।

5. परोसना:
गरमागरम धुस्का को आलू की मसालेदार सब्ज़ी या चने की घुघनी के साथ परोसा जाता है। गाँवों में इसे सालन में डुबोकर खाने का अलग ही मज़ा है।


स्वाद में छुपा सेहत का राज

धुस्का सिर्फ स्वादिष्ट ही नहीं, बल्कि पौष्टिक भी है। इसमें चावल और चने की दाल का मिश्रण शरीर को कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन दोनों देता है। तलने के कारण इसमें थोड़ी कैलोरी ज़्यादा होती है, लेकिन ठंड के मौसम में यह शरीर को ऊर्जा देता है।


धुस्का और झारखंड की पहचान

झारखंड के बाज़ारों में सुबह-सुबह छोटे-छोटे ठेले लग जाते हैं, जहाँ गरमागरम धुस्का और घुघनी की प्लेट मिलती है। यह न केवल स्थानीय लोगों का पसंदीदा नाश्ता है बल्कि बाहर से आने वाले पर्यटक भी इसका स्वाद चखने के बाद इसके मुरीद हो जाते हैं।
कई सोशल मीडिया फूड ब्लॉगर्स ने धुस्का को अपने चैनल पर दिखाया है, जिससे यह व्यंजन अब राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रहा है।


त्योहारों और मेलों में धुस्का का जलवा

झारखंड के किसी भी मेला या हाट में जाएँ, आपको एक कोने में तली जा रही सुनहरी, फूली-फूली धुस्का ज़रूर मिलेगी। बच्चे, बुज़ुर्ग, युवा—सबकी भीड़ वहाँ लगी रहती है। मकर संक्रांति, होली या दीवाली पर तो घर-घर में इसकी खुशबू फैल जाती है।


धुस्का के बदलते रूप

पारंपरिक धुस्का अब कई नए रूपों में भी आने लगा है। कुछ लोग इसमें पालक, मेथी या पनीर मिलाकर हेल्दी ट्विस्ट दे रहे हैं। वहीं, कुछ होटलों ने इसे चाट, दही और चटनी के साथ परोसना शुरू कर दिया है। लेकिन असली मज़ा तो मिट्टी के चूल्हे पर बने देसी धुस्का में ही है।




झारखंड से बाहर भी बढ़ती लोकप्रियता

दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे महानगरों में भी झारखंडी रेस्टोरेंट और फूड फेस्टिवल में धुस्का की डिमांड बढ़ रही है। विदेश में बसे झारखंडी लोग भी इसे घर पर बनाकर अपने दोस्तों को खिलाते हैं और अपने गाँव की यादें ताज़ा करते हैं।


समाप्ति: स्वाद जो जोड़ता है दिलों को

धुस्का सिर्फ एक व्यंजन नहीं, बल्कि एक अनुभव है—झारखंड के लोगों की मेहमाननवाज़ी, उनकी परंपरा और उनकी संस्कृति का स्वाद।
अगली बार अगर आप झारखंड जाएँ, तो चाय के साथ गरमागरम धुस्का ज़रूर चखें। यकीन मानिए, इसका स्वाद आपकी स्मृतियों में हमेशा ताज़ा रहेगा।

No comments:

Post a Comment

Do Leave your comment

Post Top Ad

Responsive Ads Here